गुरुवायूर अम्बालानादयिल मूवी रिव्यू: प्रिथ्वीराज और बेसिल जोसेफ की हास्यपूर्ण ब्रोमांस फिल्म आधे रास्ते में उत्साह खो देती है

प्रिथ्वीराज और बेसिल जोसेफ अभिनीत कॉमेडी फिल्म 'गुरुवायूर अम्बालानादयिल' दो संभावित साढ़ू भाइयों आनंदन (प्रिथ्वीराज) और विनु (बेसिल जोसेफ) के बीच की अनोखी बॉन्डिंग के चित्रण के लिए खास है। यह असामान्य रिश्ता फिल्म में अच्छी तरह निभाया गया है जो फिल्म को एक मजेदार सफर बनाता है।
हालांकि, फिल्म आधे रास्ते में उत्साह खो देती है जब दो मुख्य किरदारों के बीच की ब्रोमांस धीमी पड़ने लगती है। इसके बावजूद, दीपू प्रदीप की पटकथा के कारण फिल्म का हास्य एक मजबूत पक्ष है और प्रिथ्वीराज और बेसिल के बीच ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री के साथ अच्छी तरह काम करता है।
फिल्म का हास्य पुराने प्रियदर्शन फिल्मों की याद दिलाता है, लेकिन यह आधे रास्ते से आगे रुचि बनाए रखने में संघर्ष करता है। फिल्म में अनस्वरा राजन, निखिला विमल, सिजू सन्नी, साफबोई और योगी बाबू सहायक भूमिकाओं में हैं।
फिल्म का निर्देशन और अभिनय
गुरुवायूर अम्बालानादयिल का निर्देशन विपिन पी नायर ने किया है। उन्होंने फिल्म में दो मुख्य किरदारों के बीच की केमिस्ट्री को बखूबी दिखाया है। प्रिथ्वीराज और बेसिल जोसेफ ने अपने किरदारों को बहुत ही सहजता से निभाया है।
फिल्म में प्रिथ्वीराज के किरदार आनंदन को एक आकर्षक और मजाकिया व्यक्ति के रूप में पेश किया गया है। वहीं बेसिल जोसेफ का किरदार विनु एक सरल और भोला-भाला लड़का है। दोनों के बीच की नोंक-झोंक और मस्ती फिल्म को रोचक बनाती है।
सहायक भूमिकाओं में अनस्वरा राजन, निखिला विमल, सिजू सन्नी, साफबोई और योगी बाबू ने भी अच्छा अभिनय किया है। उनके किरदार फिल्म में अतिरिक्त हास्य का तड़का लगाते हैं।
फिल्म की कहानी और पटकथा
फिल्म की कहानी दो संभावित साढ़ू भाइयों आनंदन और विनु के इर्द-गिर्द घूमती है। आनंदन एक मजाकिया और थोड़ा बेपरवाह किस्म का व्यक्ति है जबकि विनु एक सीधा-सादा और भोला लड़का है।
दोनों की मुलाकात विनु की बहन की शादी के दौरान होती है और धीरे-धीरे उनके बीच एक अनोखी दोस्ती हो जाती है। फिल्म में उनकी इस दोस्ती को मजेदार अंदाज में पेश किया गया है।
हालांकि, फिल्म की कहानी आधे रास्ते के बाद थोड़ी कमजोर हो जाती है। फिल्म का दूसरा हाफ उतना प्रभावी नहीं है जितना पहला हाफ था। इसका कारण यह है कि फिल्म के दूसरे हाफ में आनंदन और विनु के रिश्ते को ज्यादा एक्सप्लोर नहीं किया गया है।
फिल्म की पटकथा दीपू प्रदीप ने लिखी है। उन्होंने आनंदन और विनु के किरदारों को अच्छी तरह से परिभाषित किया है। साथ ही, उन्होंने फिल्म में कई हास्यपूर्ण पलों को भी शामिल किया है जो दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहे हैं।
फिल्म की खामियां
गुरुवायूर अम्बालानादयिल एक औसत फिल्म है जिसमें कुछ खामियां भी हैं। फिल्म की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह पूरे समय एक जैसी रफ्तार बनाए रखने में नाकाम रहती है।
फिल्म का पहला हाफ काफी मनोरंजक और हास्यपूर्ण है लेकिन दूसरा हाफ उतना प्रभावी नहीं है। फिल्म के दूसरे हाफ में कहानी कुछ खिंचाव महसूस कराती है और प्रिथ्वीराज और बेसिल के बीच की केमिस्ट्री भी फीकी पड़ जाती है।
इसके अलावा, फिल्म की कहानी में कुछ लूज एंड्स भी हैं जिन्हें ठीक से समेटा नहीं गया है। फिल्म का अंत भी थोड़ा अधूरा सा लगता है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, गुरुवायूर अम्बालानादयिल एक ठीक-ठाक कॉमेडी फिल्म है जिसमें कुछ अच्छे हास्य पल हैं। हालांकि, फिल्म की कहानी और गति में निरंतरता की कमी के कारण यह एक औसत फिल्म बनकर रह जाती है।
फिल्म की सबसे बड़ी खूबी प्रिथ्वीराज और बेसिल जोसेफ की जोड़ी है जिन्होंने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। उनके बीच की केमिस्ट्री फिल्म को देखने लायक बनाती है।
यदि आप हल्की-फुल्की कॉमेडी पसंद करते हैं तो आप इस फिल्म को एक बार देख सकते हैं। लेकिन अगर आप कहानी में गहराई और निरंतरता की उम्मीद करते हैं तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है।
shubham garg
मई 16, 2024 AT 20:53यार, ये फिल्म शुरू से ही मज़ेदार है! प्रिथ्वीराज और बेसिल की जोड़ी देखके खुशी ही नहीं रोक पा रहे। थोड़ा-थोड़ा करके बहुत सारी हंसी मिलती है।
LEO MOTTA ESCRITOR
मई 16, 2024 AT 21:03अगर हम जीवन को एक फिल्म मानें तो खुशी के पलों को पकड़ना ही असली उद्देश्य है। इस रिव्यू में बताया गया है कि फिल्म का पहला हाफ ज़्यादा जीवंत है, यह एक सकारात्मक संकेत है। दो किरदारों के बीच की सादगी में गहरी सीख छुपी है, बस हमें उसे देखना है।
Sonia Singh
मई 16, 2024 AT 21:13मैंने फिल्म का पहला हिस्सा देखा, मज़ाकिया वाइब्स से भरपूर। देर तक बैठ कर हँसते-हँसते थक गया। बाकी हिस्सा थोड़ा धीमा लग रहा है लेकिन फिर भी फुल एंटर्टेनमेंट है।
Ashutosh Bilange
मई 16, 2024 AT 21:23भाई ये फिल्म पूरी तरह से एक ड्रामा फेस्ट है! एक्टिंग में तो जैसे कलाबाज़ी का अँडाज़ है, लेकिन स्क्रिप्ट में थोड़ी फसती है। आधा रास्ता फ्लैट हो जाता है, फिर भी प्रिथ्वीराज का डायलाग जादू है। कसम से, कई बार हँसी नहीं रुकी।
Kaushal Skngh
मई 16, 2024 AT 21:33देखा, थोड़ा औसत है। हाफ 1 बढ़िया, हाफ 2 खिंचा। लाइफ में भी कभी-कभी ऐसा ही होता है।
Harshit Gupta
मई 16, 2024 AT 21:43भाई भारत के सच्चे कलाकारों को इस तरह की फिल्म में नहीं देखना चाहिए! हमें ऐसी एंटरटेन्मेंट चाहिए जो हमारी संस्कृति को बड़ाए, न कि आधे रस्ते पर थक जाए। इस फिल्म में कभी-कभी तो राष्ट्रीय भावना की कमी महसूस होती है। फिर भी प्रिथ्वीराज का कॉमिक टाइमिंग वाकई शानदार है।
HarDeep Randhawa
मई 16, 2024 AT 21:53ओह ओह! क्या बात है!! इस फिल्म को देख कर तो लगा...कि अब कॉमेडी की सीमायें पूरी तरह बदल गई!!--- लेकिन, सच में, दो हाफ में थोडा फेइरी गैप है। फिर भी, लाफ्टर की स्याही अभी तक खत्म नहीं हुई!!
Nivedita Shukla
मई 16, 2024 AT 22:03चिंतन की गहराई जब तक नहीं जाती, तो फिल्म सिर्फ़ एक हल्का-फुल्का टाइम पास बन कर रह जाती है। लेकिन इस कहानी में दो साढ़ू भाईयों की दोस्ती का सार छुपा है। सोचते हैं, क्या हम भी अपने रिश्तों में ऐसे खटास‑मस्ती को जीवित रख सकते हैं? शायद यही असली मज़ा है।
Rahul Chavhan
मई 16, 2024 AT 22:13फिल्म के पहले हाफ की क्विक पेस मेरे को सबसे ज्यादा पसंद आया। प्रिथ्वीराज और बेसिल की एनर्जी सच में लिविंग एनर्जाई है। दूसरे हाफ में थोड़ा डिप्रेसिंग मोमेंट था, पर फिर भी अंत तक आते‑आते थोड़ा राहत मिला।
Joseph Prakash
मई 16, 2024 AT 22:23कोई बड़ी बात नहीं, बस मज़ा आया 👍
Arun 3D Creators
मई 16, 2024 AT 22:33बिलकुल सही कहा, फिल्म के लाजवाब कॉमेडी सीन में गहरा संदेश छुपा है। पहली बार देखी तो सोच रहा था कि बस हल्का-फुल्का मनोरंजन है, पर बाद में समझा कि दो भाईयों के बीच की मैत्री ही असली हिट है। इसलिए, थोड़ा धीमा लगे वाला पार्ट भी आगे बढ़ने का सिखावन दे रहा है।
RAVINDRA HARBALA
मई 16, 2024 AT 22:43प्लॉट में निरंतरता की कमी के कारण फिल्म केवल औसत स्तर पर ही रह गई है। स्क्रिप्ट का पहला आधा भाग प्रामाणिक कॉमेडी देता है, पर मध्य भाग का ढीला पेसिंग दर्शक को बांधे रखने में विफल रहता है। विश्लेषण से, यह एक सामान्य त्रुटि है जो कई कमर्शियल फिल्म में पायी जाती है।
Vipul Kumar
मई 16, 2024 AT 22:53भाई लोग, अगर आप हल्का-फुल्का मूड में हैं तो यह फिल्म एक बार देखिए। मैं हमेशा कहता हूँ, कभी‑कभी कॉमेडी में भी थोड़ा सोचने का मौका मिलना चाहिए। इस फिल्म में दोनों चीजें हैं-हँसी और हल्का सबक।
Priyanka Ambardar
मई 16, 2024 AT 23:03देखो, फिल्म की कमी के बारे में बात करो तो ठीक है, पर हमें याद रखना चाहिए कि हमारे भारतीय फिल्म में कभी‑कभी ऐसे रिवर्सल भी होते हैं! 👍 इस फिल्म ने दो साढ़ू भाइयों की दोस्ती को बड़ी प्यारी तरीके से दिखाया, जो हमारे देश की सांस्कृतिक बंधन को दर्शाता है।
sujaya selalu jaya
मई 16, 2024 AT 23:13समझदारी से देखिए, फिल्म में सकारात्मक पहलू भी हैं।
Ranveer Tyagi
मई 16, 2024 AT 23:23सबसे पहले तो मैं कहना चाहूँगा कि यह फिल्म देखना एक ताज़गी भरा अनुभव है; क्योंकि इसमें दो प्रमुख कलाकारों की केमिस्ट्री उज्जवल और निखरी हुई है। पहला हाफ ऐसी गति से आगे बढ़ता है कि दर्शक निरंतर हँसी और रोमान्स की दोहरी लहर में बह जाता है। प्रिथ्वीराज का सादगीभरा अंदाज़ और बेसिल की भोलेपन वाली चतुराई ने एक अनोखा मिश्रण तैयार किया। दूसरी ओर, जब कथा का दूसरा भाग शुरू हुआ तो वह थोड़ी धीमी पड़ गई, पर इस धीमी गति ने दर्शकों को विचार करने का अवसर दिया। इस दौरान, दीपू प्रदीप की पटकथा ने कई बिंदु पर मज़ाकिया पंचलाइन डालकर तनाव को कम किया। फिल्म में सहायक कलाकारों ने भी अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया, जिससे समग्र माहौल में विविधता आई। हालांकि, कहानी के कुछ हिस्सों में लूज़ एंड्स दिखे, पर यह आम तौर पर कॉमेडी फिल्मों में देखने को मिलता है। फिल्म का अंत सम्भवतः अधूरा लग सकता है, फिर भी यह दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमें हर कहानी को संपूर्ण रूप में देखना चाहिए। कुल मिलाकर, यह फिल्म हल्के-फुल्के मूड वाले लोगों के लिए एक उचित विकल्प है। यदि आप दो किरदारों के बीच की नॉन‑क्लासिक ब्रोमांस को सराहते हैं, तो यह निश्चित ही आपके लिए बेस्ट चॉइस होगी। अंत में, मैं यही कहूँगा, इस फिल्म ने हमें सिखाया कि जीवन में हँसी और दोस्ती दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।