Mauni Amavasya 2025: हरिद्वार में 50 साल बाद दुर्लभ त्रिवेणी योग, लाखों ने किया मौनस्नान

हरिद्वार में मौनी अमावस्या और पचास साल बाद त्रिवेणी योग
2025 का माघ महीना हरिद्वार के लिए खास बन गया। मौनी अमावस्या पर इस बार 50 वर्षों बाद त्रिवेणी योग और साथ में चार अन्य शुभ संयोग भी बने, जिससे हरिद्वार का माहौल पूरी तरह आध्यात्मिक रंग में रंग गया। हर-की-पौड़ी से लेकर आसपास के सभी घाटों तक सुबह 4 बजे से ही भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लोग मौन धारण करके गंगा में स्नान करने पहुंचे, मान्यता है कि इस दिन मौन रहकर स्नान करने से पाप धुलते हैं और पितरों की शांति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, त्रिवेणी योग तब बनता है जब तीन खास ग्रह-नक्षत्रों का मेल होता है। 1975 के बाद पहली बार ऐसा संयोग आया कि इसी दिन चार अन्य शुभ योग भी साथ बने, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया। देशभर से भक्त हरिद्वार पहुंचे, कई तो अपने परिवार के बुजुर्गों और बच्चों को भी लेकर आए ताकि सभी को पुण्यलाभ मिल सके। चारों ओर "हर हर गंगे" और "ओम नमः शिवाय" के गूंजने की आवाज़ से वातावरण गूंज रहा था।

सर्द मौसम के बावजूद लाखों लोगों की भीड़
इस साल का मौसम श्रद्धालुओं की आस्था की परीक्षा लेता दिखा। मौसम विभाग ने आसपास के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी और तापमान तेजी से गिरने की चेतावनी पहले ही जारी कर दी थी। ठंड ऐसी थी कि सांसों से धुंआ नजर आ रहा था, फिर भी स्नान के लिए भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं। हर घाट पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए, पुलिस, एनडीआरएफ और गंगा सेवा दल के स्वयंसेवक तैनात रहे, ताकि भीड़ में कोई अप्रिय घटना न घटे।
मौनी अमावस्या पर सिर्फ स्नान ही नहीं, बल्कि मौन रहकर किए गए दान का भी बड़ा महत्व है। लोगों ने तिल, चावल, कपड़े और अन्न का दान किया। घाटों के आसपास जगह-जगह भंडारे लगे, जहां गरीबों और यात्रियों के लिए भोजन का इंतजाम किया गया। पूजा-पाठ और पितरों के लिये तर्पण का क्रम भी दिनभर चलता रहा।
इतनी ज्यादा भीड़ पिछले कई दशकों में नहीं दिखाई दी। गंगा की लहरों में भक्तों ने अपने दु:ख-दर्द छलांग कर उतार दिए। घाटों पर घंटों तक मंत्रोच्चार होता रहा, सैकड़ों पंडित पूजा कराने में जुटे रहे। कई श्रद्धालु इस पल को कैमरे में कैद करते नजर आए, तो कुछ मौन रहकर बस गंगा किनारे शांत भाव से बैठे दिखे।
शहर का यातायात व्यवस्था भी भव्य उत्सव के हिसाब से बदली गई थी। डीसीपी स्तर के अधिकारी स्वयं निगरानी में लगे रहे। स्थानीय व्यापारी और होटल व्यवसायी भी दर्शनार्थियों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।
मौनी अमावस्या का यह दुर्लभ संयोग अगली बार कब आएगा, यह कोई नहीं जानता। लेकिन इस बार गवाह बनने के लिए लोगों ने जो उत्साह दिखाया, उसने हरिद्वार की पुरानी आस्था को एक बार फिर जीवंत कर दिया। हर तरफ श्रद्धा, मौन और तीर्थ की पवित्रता हर किसी के अनुभव में हमेशा के लिए बस गई।