राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश से टैक्स ऑडिट की अंतिम तिथि बढ़ गई 31 अक्टूबर 2025

राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश से टैक्स ऑडिट की अंतिम तिथि बढ़ गई 31 अक्टूबर 2025
26 सितंबर 2025 0 टिप्पणि jignesha chavda

दो साल में पहली बार, किसी उच्च न्यायालय ने सीधे टैक्स विभाग को कार्यवाही के लिए नई टाइमलाइन दी है। राजस्थान हाई कोर्ट के जोधपुर बेंच ने 24 सितंबर 2025 को अंतरिम आदेश जारी कर CBDT (सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज) को टैक्स ऑडिट रिपोर्ट (TAR) की अंतिम तिथि 31 अक्टूबर 2025 तक बढ़ाने का निर्देश दिया। यह फैसला भिलवाड़ा और जोधपुर टैक्स बार एसोसिएशन की संयुक्त याचिकाओं के बाद आया, जिनका कहना था कि मौजूदा 30 सितंबर की डेट व्यावहारिक नहीं है।

केस की पृष्ठभूमि और मुख्य बिंदु

सेक्शन 44AB के तहत उन करदाताओं को टैक्‍स ऑडिट करवाना अनिवार्य है जिनकी आय या टर्नओवर कुछ तय सीमा से अधिक होती है। ऑडिट का उद्देश्य आयकर कानून की शुद्धता सुनिश्चित करना और विभिन्न वैधानिक नियमों के पालन की जाँच करना है। चार्टर्ड अकाउंटेंट इस ऑडिट को करने के बाद फॉर्म 3CA/3CB और 3CD के माध्यम से परिणाम जमा करते हैं।

  • नया अंतिम तारीख: 31 अक्टूबर 2025 (पहले 30 सितंबर 2025)
  • आदेश के पीछे की वजह: करदाताओं को पर्याप्त समय देना ताकि गुणवत्ता‑परक ऑडिट हो सके।
  • आगे की सुनवाई: 27 अक्टूबर 2025 को आगामी सत्र निर्धारित है।
  • ITR फ़ाइलिंग डेडलाइन: 15 सितंबर से 16 सितंबर 2025 तक एक दिन बढ़ाई गई।
प्रभाव और आगे की कार्यवाही

प्रभाव और आगे की कार्यवाही

यह फैसला टैक्स ऑडिट के लिये राहत का इशारा है, क्योंकि कई चार्टर्ड अकाउंटेंट और करदाता पहले ही टाईट टाइमलाइन के चलते रियल-टाइम में काम कर रहे थे। अब उन्हें अतिरिक्त एक महीने का समय मिलेगा, जिससे वे न केवल फॉर्म भर पाएँगे बल्कि डेटा वैरिफिकेशन, एरर‑चेक और क्लाइंट के साथ समन्वय को भी बेहतर बना पाएँगे।

CBDT ने अभी तक इस आदेश को लागू करने के विवरण नहीं बताए हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगले हफ्ते में एक आधिकारिक नोटिफिकेशन आएगा, जिसमें फॉर्म जमा करने की नई प्रक्रिया और ऑनलाइन सिस्टम में अपडेट बताये जाएंगे। इस बीच, आयकर विभाग ने 2025-26 के असेसमेंट ईयर (AY) के लिए ITR फॉर्म में ऑनलाइन प्री‑फिल्ड डेटा की सुविधा जारी रखी है, जिससे फ़ाइलिंग आसान हो रही है।

टैक्स बार के सदस्यों ने इस दिशा में सरकार से पहले कई बार अनुरोध किया था। उन्होंने वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को कई पत्र लिखे और कहा कि मौजूदा डेडलाइन बहुत टाइट है, क्योंकि ऑडिट प्रक्रिया में दस्तावेज़ों की शारीरिक जाँच, लिक्विडेशन और कई बार अतिरिक्त स्पष्टीकरण की ज़रूरत पड़ती है। कोर्ट का हस्तक्षेप इन सभी चिंताओं को प्रत्यक्ष तौर पर सुलझा रहा है।

भविष्य में अगर कोई ऐसी ही मांग आती है, तो उम्मीद है कि उच्च न्यायालयों की भूमिका और सक्रिय रहेगी, क्योंकि करदाताओं और प्रोफ़ेशनल्स दोनों को रीयल‑टाइम में काम करने की सीमा नहीं है। इस दिशा में दी गई यह रियायत आर्थिक दबाव को कम करके, करदाता का भरोसा बढ़ा सकती है, और अंततः कर संग्रह में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।