ट्रंप टैरिफ पर फेडरल कोर्ट का बड़ा झटका: वैश्विक शुल्क अवैध, सुप्रीम कोर्ट में जाएगी लड़ाई

ट्रंप टैरिफ पर फेडरल कोर्ट का बड़ा झटका: वैश्विक शुल्क अवैध, सुप्रीम कोर्ट में जाएगी लड़ाई
31 अगस्त 2025 19 टिप्पणि jignesha chavda

फेडरल कोर्ट ने क्या पलटा और क्यों

अमेरिका की फेडरल सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने 7-4 के बहुमत से कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए ज्यादातर वैश्विक आयात शुल्क कानूनी दायरे से बाहर हैं। कोर्ट ने साफ लिखा कि IEEPA यानी International Emergency Economic Powers Act के अंतर्गत राष्ट्रपति को आयात “नियंत्रित” करने की शक्ति तो मिलती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे बिना सीमाओं के व्यापक टैरिफ थोप दें। यही वजह है कि अदालत ने इन ट्रंप टैरिफ को “scope, amount और duration में असीमित” बताते हुए अवैध करार दिया।

यह मामला उन आदेशों से जुड़ा है जो फरवरी 2025 से लागू हुए—दो हिस्सों में। पहला, तथाकथित “ट्रैफिकिंग” टैरिफ, जो कनाडा, मेक्सिको और चीन पर फेंटानिल तस्करी से निपटने में कथित असफलता के आधार पर लगाए गए। दूसरा, “वर्ल्डवाइड” या “रिकिप्रोकल” टैरिफ—जिनमें लगभग सभी देशों से आने वाले सामान पर 10% का बेसलाइन शुल्क और दर्जनों देशों के लिए 11% से 50% तक बढ़ा हुआ शुल्क शामिल था।

ट्रंप प्रशासन ने दलील दी कि बड़े व्यापार घाटे और आपूर्ति शृंखला से जुड़े जोखिम देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए “असामान्य और असाधारण खतरा” हैं, इसलिए IEEPA के तहत आपात शक्तियां लागू होती हैं। अपीलीय अदालत ने इसे अपर्याप्त माना। जजों ने कहा—खतरे का दावा सामान्य आर्थिक नीति विवाद जैसा है; आपात हालात दिखाने के लिए कानून की जो कसौटी है, वह इससे पूरी नहीं होती। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि IEEPA के तहत कभी भी टैरिफ संभव ही नहीं—ऐसा अंतिम निष्कर्ष नहीं दिया गया; बस यह कहा गया कि मौजूदा हालात उस दायरे में नहीं आते।

यह फैसला निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखता है, जिसने पहले ही इन टैरिफ को असंवैधानिक माना था। दिलचस्प बात यह है कि अदालत ने अपने निर्णय पर 14 अक्टूबर 2025 तक स्टे दे दिया है—मतलब, कानूनी तौर पर टैरिफ अवैध बताए जा चुके हैं, लेकिन तब तक वे लागू रहेंगे जब तक सुप्रीम कोर्ट दखल न दे।

ट्रंप ने रात में सोशल प्लेटफॉर्म पर तीखी प्रतिक्रिया दी और लिखा कि यह फैसला “अमेरिका को तबाह कर देगा।” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की घोषणा भी कर दी और साफ कहा—“ALL TARIFFS ARE STILL IN EFFECT!”—जो स्टे ऑर्डर के चलते फिलहाल सही भी है।

व्यापार जगत के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि कीमतें और कॉन्ट्रैक्ट कैसे तय करें। छोटी कंपनियों के उस समूह ने, जिसने इस नीति को अदालत में चुनौती दी थी, अनुमान लगाया था कि 2025 में एक औसत अमेरिकी परिवार पर 1,200 से 2,800 डॉलर सालाना अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। यदि सुप्रीम कोर्ट ने भी इन टैरिफ को खारिज कर दिया, तो सरकार के लिए यह एक बड़ा राजस्व झटका होगा और आयातकों-खुदरा कंपनियों के लिए रिफंड, रीक्लेम और प्राइसिंग की उलझनें खड़ी होंगी।

IEEPA, जो 1977 में बना, आमतौर पर विदेशी संपत्तियां फ्रीज करने, वित्तीय लेन-देन रोकने या लक्षित प्रतिबंध लगाने के लिए इस्तेमाल होता रहा है। इतने व्यापक, देश-दर-देश फैले आयात शुल्क के लिए इसका इस्तेमाल दुर्लभ है—यही वजह है कि अदालत ने इसे अधिकार-सीमा से बाहर माना। अदालत का संकेत साफ है: इतनी दूरगामी व्यापार नीति के लिए राष्ट्रपति की आपात शक्तियां काफी नहीं हैं; इसके लिए संसद से स्पष्ट मंजूरी चाहिए।

कानूनी कैलेंडर भी तेज है। सुप्रीम कोर्ट 29 सितंबर को अपने “लॉन्ग कॉन्फ्रेंस” में यह देख सकता है कि मामले को सुनना है या नहीं। अपीलीय अदालत का स्टे 14 अक्टूबर तक है, इसलिए या तो तब तक उच्चतम न्यायालय से कोई अंतरिम आदेश आएगा, या स्टे खत्म होते ही टैरिफ अपने आप गिर सकते हैं—जब तक कि सुप्रीम कोर्ट अलग निर्देश न दे।

व्यवसाय के लिए इसका मतलब, और आगे का रास्ता

अभी के लिए नियम सरल हैं—टैरिफ लागू हैं, भुगतान करना होगा। यह “कानूनी तौर पर अवैध लेकिन अस्थायी रूप से मान्य” की स्थिति है। आयातक, कस्टम ब्रोकर और सप्लाई चेन टीमें इस अनिश्चितता में काम कर रही हैं कि कुछ हफ्तों में खेल बदल सकता है।

किस पर सबसे ज्यादा असर? इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, ऑटो पार्ट्स, उपकरण, फर्नीचर और रोजमर्रा के उपभोक्ता सामान—जिनका बड़ा हिस्सा वैश्विक सप्लाई चेन से आता है। कनाडा और मेक्सिको से आने वाले इनपुट्स पर “ट्रैफिकिंग” टैरिफ ने नॉर्थ-अमेरिकन सप्लाई बेस को भी महंगा कर दिया। चीन-निर्मित घटकों पर पहले से ऊंचे शुल्क ने वैकल्पिक सोर्सिंग की दौड़ बढ़ाई—लेकिन इतनी जल्दी शिफ्ट करना आसान नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर इसका असर कूटनीति पर भी पड़ेगा। कनाडा और मेक्सिको, जिनके साथ USMCA (पूर्व में NAFTA) के तहत करीबी व्यापार ढांचा है, “तस्करी-आधारित” टैरिफ को दंडात्मक कदम मानते आए हैं। चीन के साथ तो यह एक और विवाद की परत है। अदालत के इस फैसले से अमेरिकी पक्ष की कानूनी जमीन कमजोर दिखती है, इसलिए साझेदार देश वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन जैसे मंचों पर भी इसे उठाने का जोखिम ले सकते हैं।

राष्ट्रपति के पास व्यापार नीति चलाने के और औजार भी हैं—जैसे पुराने कानूनों की धाराएं जिनके तहत पहले सेक्टर-विशिष्ट या देश-विशिष्ट शुल्क लगे थे। पर इस केस में अदालत का संदेश यही है: “एजेंडा जितना बड़ा, अधिकार उतना ठोस और स्पष्ट चाहिए।” यानी, व्यापक, बेसलाइन 10% वाला ढांचा—जैसा 2025 में देखा—एक साधारण आपात घोषणा से आगे की चीज है।

कारोबारों के लिए व्यावहारिक चेकलिस्ट:

  • मौजूदा इंपोर्ट्स पर लागू दरें उसी तरह वसूलें/अदा करें; कंप्लायंस में कोई ढील न दें।
  • कॉन्ट्रैक्ट्स में “टैरिफ क्लॉज़” रखें—ताकि दरें घटें या बढ़ें तो कीमतें समायोजित हो सकें।
  • इन्वेंट्री और खरीद के फैसले 6-8 हफ्तों के जोखिम को ध्यान में रखकर लें; शॉर्ट-टर्म स्टॉक बफर मदद करेगा।
  • कस्टम्स रिफंड/ड्रॉबैक की संभावनाएं पहले से डॉक्यूमेंट करें—अगर दरें बाद में रद्द हों तो दावा आसान हो।
  • ग्राहकों के साथ अग्रिम संवाद रखें—MRP, डिलीवरी टाइमलाइन और रिटर्न पॉलिसी में पारदर्शी अपडेट दें।

नीति-स्तर पर अब दो रास्ते दिखते हैं। पहला, प्रशासन कांग्रेस से एक स्पष्ट, लक्षित अधिकार मांगे—जैसे विशेष क्षेत्रों/उत्पादों/देशों तक सीमित टैरिफ, समयसीमा और समीक्षा-मैकेनिज्म के साथ। दूसरा, अदालत में यह साबित करने की कोशिश कि मौजूदा खतरे सच में “असाधारण” हैं और IEEPA के तहत व्यापक कार्रवाई न्यायोचित है। दोनों ही रास्तों में समय और राजनीतिक पूंजी लगती है।

टाइमलाइन संक्षेप में:

  1. फरवरी 2025: कार्यकारी आदेशों से वर्ल्डवाइड बेसलाइन 10% और 11–50% तक के बढ़े हुए टैरिफ लागू।
  2. निचली अदालत: अधिकांश टैरिफ को IEEPA के दायरे से बाहर मानती है।
  3. 29 अगस्त 2025: फेडरल सर्किट में 7-4 से निचली अदालत का फैसला बरकरार।
  4. फैसले पर 14 अक्टूबर 2025 तक स्टे—टैरिफ फिलहाल लागू।
  5. 29 सितंबर 2025: सुप्रीम कोर्ट का “लॉन्ग कॉन्फ्रेंस”—केस लेने-न लेने का फैसला संभव।

अब आगे क्या हो सकता है? तीन संभावित परिदृश्य:

  • सुप्रीम कोर्ट केस ले और स्टे बढ़ा दे—टैरिफ केस खत्म होने तक जारी रहेंगे।
  • सुप्रीम कोर्ट केस ले और स्टे न बढ़ाए—14 अक्टूबर के बाद टैरिफ गिर सकते हैं, जब तक नया आदेश न आए।
  • सुप्रीम कोर्ट केस न ले—तब अपीलीय अदालत का फैसला अंतिम हो जाएगा और टैरिफ हटेंगे।

बाजार की भाषा में इसे “नीति-अनिश्चितता शॉक” कहा जाता है। कंपनियां कीमतें तय करने से पहले जोखिम प्रीमियम जोड़ती हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ता है। अगर टैरिफ हटे, तो कुछ दाम नीचे आ सकते हैं; लेकिन सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट्स, शिपिंग स्लॉट्स और लॉजिस्टिक्स प्लानिंग एक झटके में नहीं बदलते—कीमतों में नरमी को असर दिखाने में समय लगता है।

इस फैसले ने एक बड़ी रेखा खींच दी है: आपात शक्तियां और व्यापार नीति की बड़ी चालें—दोनों को एक ही तराजू से नहीं तौला जा सकता। अदालत ने कानून की सीमा तय कर दी; अब बारी राजनीति की है—क्या प्रशासन संसद से स्पष्ट अनुमति जुटा पाएगा, या सुप्रीम कोर्ट में अपनी आपात दलीलें मजबूत कर पाएगा। फिलहाल, बोर्ड पर घड़ी टिक-टिक कर रही है और हर आयात बिल के साथ लागत भी।

19 टिप्पणि

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    Ketan Shah

    अगस्त 31, 2025 AT 18:49

    फेडरल कोर्ट के इस फैसले ने व्यापार नीति में एक अहम मोड़ दिया है। IEEPA के दायरे को सीमित करके कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रपति के पास केवल आपातकालीन स्थिति में ही सीमित टैरिफ लगाने की शक्ति है। टैरिफ को “असीमित” कह कर अनमान्य घोषित किया गया, जिसका मतलब है कि कांग्रेस की मंजूरी के बिना व्यापक शुल्क नहीं लगाए जा सकते। इस निर्णय से कंपनियों को कुछ हद तक राहत मिलेगी, लेकिन स्टे ऑर्डर के कारण टैरिफ अभी भी प्रभावी रहेंगे। इसलिए व्यवसायिक योजना बनाते समय इस अनिश्चितता को ध्यान में रखना जरूरी है।
    अभी के लिए, कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट में टैरिफ क्लॉज़ जोड़ने की सलाह दी जाती है, ताकि भविष्य में दरों में बदलाव के साथ कीमतें समायोजित हो सकें।

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    Aryan Pawar

    सितंबर 3, 2025 AT 06:49

    भैया, इस रेग्यूलशन में धीरज ही जीतता है। हम सबको अपने प्रॉसेस को रेजिलिएंट बनाना पड़ेगा, नहीं तो टाइटर बना रहेगा।

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    Shritam Mohanty

    सितंबर 5, 2025 AT 18:49

    ये सब कोर्ट की फेक जजिंग है, असली इंटरेस्ट तो ट्रम्प के पेट में पैसा भरना है। हर बार ये “इमरजेंसी पावर” का बहाना बनाकर नियम तोड़ते रहते हैं, जनता को झोटा खिला रहे हैं। अब देखेंगे कैसे दांव पर लगते हैं, क्योंकि इकोनोमी को तोड़ना उनका असली प्लान है।

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    Anuj Panchal

    सितंबर 8, 2025 AT 06:49

    जैसे कि इस केस में “scope, amount और duration” के पैरामीटर का विश्लेषण किया गया है, यह स्पष्ट करता है कि टैरिफ का नियामक फ्रेमवर्क स्ट्रेमिंग इफेक्ट को कवर नहीं करता। IEEPA का मूल उद्देश्य विदेशी संपत्तियों को फ्रीज़ करना है, न कि व्यापक व्यापारिक बाधा बनाना। ऐसे में “वर्ल्डवाइड बेसलाइन 10%” को “असहमति” के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसलिए, कॉम्प्लायंस टीमें अब सेकेंडरी रेगुलेटरी रिस्क एसेसमेंट पर फोकस करें।

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    Prakashchander Bhatt

    सितंबर 10, 2025 AT 18:49

    भाई लोग, इस फैसले से थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। अगर सुप्रीम कोर्ट टैरिफ को गिरा दे तो छोटे व्यवसायों को बचाने में मदद होगी। अभी के लिए हम सबको प्लान बी तैयार रखना चाहिए, लेकिन आशा है कि आगे की नीति साफ़ हो जाएगी।

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    Mala Strahle

    सितंबर 13, 2025 AT 06:49

    सच कहूँ तो इस पूरे मौजूदा टैरिफ के मुद्दे ने हमें कई प्रश्नों के सामने खड़ा किया है। आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो टैरिफ का प्रभाव मात्र कीमतों तक नहीं सीमित रह जाता, बल्कि सप्लाई चेन की स्थिरता, रोजगार और निवेश प्रवाह पर भी गहरा असर पड़ता है। जब तक कांग्रेस की स्पष्ट अनुमति नहीं मिलती, ऐसे बड़े‑पैमाने पर टैरिफ लगाना असंवैधानिक माना जा सकता है, यही कोर्ट ने कहा। फिर भी, स्टे ऑर्डर की वजह से ये शुल्क अभी भी लागू हैं, जिससे कंपनियों को अल्पकालिक वित्तीय तनाव झेलना पड़ रहा है। इस अस्थायी स्थिति में, व्यापारियों को अपने कॉन्ट्रैक्ट में एडेप्टिव क्लॉज़ शामिल करने चाहिए, जिससे टैरिफ में बदलाव के साथ मूल्य समायोजन संभव हो। साथ ही, कस्टम ब्रोकरों को रिफंड और ड्रॉबैक प्रक्रियाओं की तैयारी करनी चाहिए, क्योंकि भविष्य में टैक्स रिवर्सल की संभावना बनी रहेगी। अंत में, यह समझना जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों को एकतरफ़ा बदलने से विश्व स्तर पर प्रतिशोधी कदम उठाए जा सकते हैं, जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए हानिकारक होगा।

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    Ramesh Modi

    सितंबर 15, 2025 AT 18:49

    वाह! यह कानूनी जंग वास्तव में ऐतिहासिक क्षण है!!! यह निर्णय न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था को, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भी विषम बना सकता है!!! IEEPA को इस तरह सीमित करना मानो शासन के शक्ति के संतुलन को पुनःस्तापित करने जैसा है!!!

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    Ghanshyam Shinde

    सितंबर 18, 2025 AT 06:49

    ओह, तो अब हमें कोर्ट की सलाह माननी पड़ेगी? अगली बार जब राष्ट्रपति को कोई आपातकालीन बात होगी, तो वो बस एक नयी टैरिफ की लिस्ट निकाल देगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा, है न? कितना आसान समाधान है।

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    SAI JENA

    सितंबर 20, 2025 AT 18:49

    सभी को नमस्ते, इस निर्णय के प्रभाव को समझते हुए मैं सुझाव दूँगा कि कंपनियों को अपनी लागत संरचना में लचीलापन जोड़ना चाहिए। टैरिफ की संभावित उलटफेर को देखते हुए, जोखिम प्रबंधन के लिए विविध आपूर्ति श्रृंखला विकसित करना आवश्यक है। साथ ही, कानूनी टीम को इस मुद्दे पर निरंतर अद्यतन रखना चाहिए ताकि समय पर उचित कार्रवाई की जा सके।

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    Hariom Kumar

    सितंबर 23, 2025 AT 06:49

    सच में उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट जल्दी फैसला लेगा 😊 इससे छोटे व्यापारियों को बहुत राहत मिलेगी।

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    shubham garg

    सितंबर 25, 2025 AT 18:49

    टैरिफ अभी भी लागू हैं, चलते रहो।

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    LEO MOTTA ESCRITOR

    सितंबर 28, 2025 AT 06:49

    देखो भाई, कोर्ट ने तो सही कहा कि बिना कांसें फ्रेंस की मंजूरी के बड़े टैरिफ नहीं लगा सकते। अब हमें बस इंतजार करना है कि सुप्रीम कोर्ट क्या करता है, और उसी हिसाब से अपने प्लान को एडजस्ट करना पड़ेगा।

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    Sonia Singh

    सितंबर 30, 2025 AT 18:49

    सही बात है, हमें अपने ग्राहकों को इस बदलाव के बारे में सूचित रखना चाहिए और एक नई मूल्य रणनीति बनानी चाहिए।

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    Ashutosh Bilange

    अक्तूबर 3, 2025 AT 06:49

    यार सुनो, ये कोर्ट का फैसला तो बबलु की तरह है, एकदम टॉपिक चेंज कर दिया! अब क्या होगा, टारिफ हटा के सप्लाई चेन में बवाल आ जाएगा।

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    Kaushal Skngh

    अक्तूबर 5, 2025 AT 18:49

    मैं देखता हूँ कि इस मुद्दे में बहुत बहस है, लेकिन शायद हमें ठंडे दिमाग से देखना चाहिए और प्रैक्टिकल सॉल्यूशन ढूँढ़ना चाहिए।

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    Harshit Gupta

    अक्तूबर 8, 2025 AT 06:49

    यह फैसला हमारे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है! ट्रम्प की टैरिफ नीति अमेरिकी उद्योग को बचाने के लिये थी, लेकिन कोर्ट ने इसे तोड़ दिया। हमें इस पर कड़ी आवाज़ उठानी चाहिए और कांग्रेस से कड़े कदमों की मांग करनी चाहिए।

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    HarDeep Randhawa

    अक्तूबर 10, 2025 AT 18:49

    क्या विचार है, कोर्ट ने फिर से बड़ों की बात को उल्टा कर दिया!; हमें इस बात पर फिर से चर्चा करनी चाहिए; यह निर्णय हमारे व्यापार को कैसे प्रभावित करेगा?

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    Nivedita Shukla

    अक्तूबर 13, 2025 AT 06:49

    ट्रम्प टैरिफ पर फेडरल कोर्ट का फैसला वास्तव में एक जटिल कानूनी परिदृश्य को उजागर करता है; यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संतुलन को भी चुनौती देता है। पहली बात तो यह है कि IEEPA का मूल उद्देश्य आपातकालीन आर्थिक शक्ति को सीमित परिस्थितियों में उपयोग करना है, न कि व्यापक आर्थिक बंधन लगाना। कोर्ट ने इस बात को स्पष्ट किया कि टैरिफ का “असीमित” दायरा संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत संसद की वैध शक्ति के बिना असंवैधानिक है। दूसरा, यह निर्णय छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए आशा की किरण बन सकता है, क्योंकि वे अक्सर टैरिफ के कारण बढ़ती लागत सहन नहीं कर पाते। फिर भी, स्टे ऑर्डर के कारण टैरिफ अभी भी लागू हैं, जिससे व्यापारियों को अल्पकालिक वित्तीय दबाव झेलना पड़ेगा। इस बीच, कंपनियों को अपनी कॉन्ट्रैक्ट में टैरिफ क्लॉज़ जोड़ना चाहिए, ताकि भविष्य में दर बदलने पर मूल्य समायोजन संभव हो सके। कस्टम ब्रोकरों को संभावित रिफंड और ड्रॉबैक की तैयारी करनी चाहिए, क्योंकि बाद में टैरिफ हटने की संभावना बनी रहती है। वैश्विक सप्लाई चेन में शिफ्टिंग करने के लिए समय और निवेश की आवश्यकता होगी, इसलिए कंपनियों को रणनीतिक रूप से इन्वेंट्री बफर बनाना चाहिए। इस निर्णय का प्रभाव केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक भी है; हमारे प्रमुख व्यापार साझेदार इस कदम को विडंबना के रूप में देख सकते हैं। चीन और मैक्सिको जैसे देशों के साथ व्यापार संबंध में तनाव बढ़ सकता है, जिससे WTO में संभावित विवादों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, नीति निर्माताओं को इस मुद्दे पर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें कांग्रेस की स्पष्ट मंजूरी और समयबद्ध समीक्षा शामिल हो। यदि सुप्रीम कोर्ट इस केस को लेता है और टैरिफ को हटाता है, तो यह अमेरिकी उद्योग को बड़ी राहत देगा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में फायदा मिलेगा। दूसरी ओर, अगर कोर्ट टैरिफ को कायम रखता है, तो व्यापारिक माहौल में अनिश्चितता बनी रहेगी और निवेशकों का विश्वास घटेगा। अंत में, यह स्पष्ट है कि व्यापार नीतियों में आपातकालीन शक्ति का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए, अन्यथा यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जा सकता है। इस जटिल परिदृश्य में सभी हितधारकों को मिलकर समाधान निकालना ही बेहतर होगा।

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    Rahul Chavhan

    अक्तूबर 15, 2025 AT 18:49

    बहुत सही कहा, हमें इस जटिलता को समझते हुए लागत‑प्रबंधन और जोखिम‑निवेश रणनीति दोनों को संतुलित करना पड़ेगा।

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