बांग्लादेश में विश्वविद्यालयों में नौकरी आरक्षण प्रणाली को लेकर झड़पें और हिंसा
जुल॰, 17 2024बांग्लादेश में नौकरी आरक्षण प्रणाली को लेकर बढ़ते तनाव
बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में पिछले कुछ दिनों से हिंसक झड़पों और तनावपूर्ण माहौल का कोहराम मचा हुआ है। यह विद्रोह सरकार की नौकरी आरक्षण प्रणाली के खिलाफ छात्रों द्वारा शुरू हुआ है, जिसमें कई छात्रों को गंभीर चोटें आई हैं।
यह आक्रोश हाल ही में बांग्लादेश के उच्च न्यायालय के एक निर्णय के बाद उभरा है, जिसमें 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30% सरकारी नौकरी का कोटा पुनः बहाल कर दिया गया है। प्रदर्शनकारी, जो अन्य हाशिए पर रहने वाले समूहों जैसे महिलाओं, अनुसूचित जातियों और विकलांगों के लिए आरक्षण का समर्थन करते हैं, का कहना है कि वे इस आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वे स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30% कोटा को हटाने की मांग कर रहे हैं।
धाका विश्वविद्यालय में उत्पन्न हुई हिंसा
हिंसा की शुरुआत सोमवार को धाका विश्वविद्यालय में हुई, जहां सत्तारूढ़ अवामी लीग के छात्र विंग, बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के सदस्यों और प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच झड़पें हुईं। इन झड़पों में 100 से अधिक छात्र घायल हो गए।
छात्रों का कहना है कि यह कोटा प्रणाली अनुचित है और उन्हें नौकरी के लिए अनुचित प्रतिस्पर्धा में डालती है। इसके बावजूद, सरकार ने इस प्रणाली का समर्थन करते हुए कहा है कि यह युद्ध सेनानियों और उनके परिवारों के बलिदानों का सम्मान करने के लिए आवश्यक है।
जाहांगीर नगर विश्वविद्यालय में बढ़ी हिंसा
हालात तब और बिगड़ गए जब मंगलवार सुबह जाहांगीर नगर विश्वविद्यालय, जो राजधानी धाका के बाहर स्थित है, में भी प्रदर्शनकारियों और बीसीएल के सदस्यों के बीच झड़पें हुईं। विश्वविद्यालय में उपकुलपति के निवास के सामने एकत्र हुए प्रदर्शनकारियों पर बीसीएल के कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया, जिससे 50 से अधिक लोग अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराए गए, जिनमें से 30 से अधिक लोग छर्रे की चोटों के साथ गंभीर रूप से घायल हो गए।
इन घटनाओं के कारण कुल मिलाकर छात्रों के मन में गुस्सा और विरोध की भावना और भी बढ़ गई है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और भविष्य की संभावना
विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके छात्र विंग ने कोटा प्रणाली के खिलाफ जुलूस निकालने का आह्वान किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की कठोर प्रतिक्रिया और प्रदर्शनकारियों की वैध शिकायतों का समाधान न करने की स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है और और भी अधिक हिंसा का कारण बन सकती है।
इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि सरकार को यह समझना महत्वपूर्ण है कि युवा पीढ़ी के असंतोष और आवाज को न सुना जाना कितना खतरनाक हो सकता है।
सरकार का दावा है कि इस कोटा प्रणाली को लागू करना आवश्यक है ताकि स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं और उनके उत्तराधिकारियों के बलिदानों को याद किया जा सके और सम्मानित किया जा सके।
उधर, प्रदर्शनकारियों के अनुसार, यह प्रणाली बेरोजगारों के मानसिकता पर एक अतिरिक्त भार और अनुचित प्रतिस्पर्धा का कारण बनती है। यह स्थिति सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती है, क्योंकि इससे न केवल शैक्षणिक संस्थानों में बल्कि पूरे समाज में अस्थिरता बढ़ सकती है।
समाज और छात्रों के लिए परिणाम
इस विरोध प्रदर्शन से समाज के कई हिस्से प्रभावित हो रहे हैं, जैसे कि छात्रों के भविष्य और उनकी शिक्षा पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
इस पूरी स्थिति में यह स्पष्ट है कि समस्याओं के स्थायी समाधानों को खोजे बिना, सरकार केवल समस्या को और अधिक जटिल बना रही है।
अगले कुछ दिनों में क्या होगा, यह देखने लायक होगा क्योंकि सरकार और प्रदर्शनकारी दोनों समर्थक अपने-अपने दृष्टिकोण पर अडिग बने हुए हैं।